Thursday, October 21, 2010

मेरी गली

नफरत का जहां नाम नहीं,प्यार रहता जहॉ घर घर ।
उसी गली के मोड पर, आखरी है मेरा घर,
जिस गली के कोने से गुडिया के बाल वाला दिख जाए,
बस समझो भैया वहीँ से मेरी गली शुरु हो जाए,
बचपन से जवानी तक आवाज ना उसकी बदली,
बदल गयी सारी दुनिया पर गली ना मेरी बदली,
बच्चों का शोर कहीं, कहीं दुकानदारों की आवाज,
यहीं मनती होली, दीवाली यहीं सुनती मस्जिद की नवाज़,
मेरे घर की बालकनी से दिखता सारी गली का मन्जर,
बच्चे स्कूल जाते दिखते, बडे जाते दिखते दफ़्तर,
आजे, पीछे, ऊपर, नीचे हर दम होती भागम- दोड,
कभी चुप रहती, कभी शोर मचाती,
कई सालों से ऐसी ही है ये रोड,
ना आराम, ना थकान सँभालती सारा जहाँ,
हर पल यूँ देखती सबको जैसे ममता भरी माँ ,
सोचती हूँ  की हर गली ऐसी ही होती है,
फिर याद आया माँ तो एक ही होती है,
एक ही होती है।