Monday, October 11, 2010

एक सच जीवन का




कांटों पर चलते हुए जब भी किसी को ढुंढना चाहा,
तो बस दर्द को पास पाया, गम की बाहों में जीते जीते,
खुशियों की परचाइयां भी छूट गयीं।
कुछ धुंधली तस्वीरें अब साफ दिखने लगी हैं,
जबसे इंसानियत बाजारों में बिकने लगी हैं।
अब होंठ भी खामोशीयों का साथ देते हैं,
अब दिल धड़कता नही बस जीता है।
और आंखों ने भी अंधेरों से दोस्ती कर ली है,
अन्चाही राहों की ओर बढते हुए अब कदम डगमगाया नही करते,
अब ये सच जान गया है मन कि बीते हुए पल वापस आया नही करते।
यादें मगर साया बनकर साथ चलती हैं,
खुशियों को पाने की आस नही, बस मौत को गले लगाने की चाह है,
कुछ दुख भरे लम्हे गुजर गये हैं, कुछ वक़्त और बिताना है।
जीवन क्या है ये आज मैनें जाना है।

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