Monday, October 11, 2010

खूब बखान मचालो आज तो


खूब बखान मचालो आज तो,
एक गरीब की व्यथा रैंन का।
म्रन्नरण अव्यय से हो गये हो,
नाम नही है कहिं चैंन का,
मुझको लेलो संसार के मझारन से,
यही अरज करते हो जम से।
हे इन्द्र उठा लो मुझे यहां से,
अपने निर्दय कुलिश के दम से।
मेरे नग्गेपन पर हंसती है,
 दुनिया भर-भर कर हुंकार ,
ये गरीबी चलाती है जब,
 अपनी बरछी और करवाल ।
ये गरीबी अराती बन बरसती,
 जेंसे बरस रहा हो कालकूट,
मेरी सांसे मौत को तरसतीं,
 जैंसे अनागत के लिये भूत।

एक सच जीवन का




कांटों पर चलते हुए जब भी किसी को ढुंढना चाहा,
तो बस दर्द को पास पाया, गम की बाहों में जीते जीते,
खुशियों की परचाइयां भी छूट गयीं।
कुछ धुंधली तस्वीरें अब साफ दिखने लगी हैं,
जबसे इंसानियत बाजारों में बिकने लगी हैं।
अब होंठ भी खामोशीयों का साथ देते हैं,
अब दिल धड़कता नही बस जीता है।
और आंखों ने भी अंधेरों से दोस्ती कर ली है,
अन्चाही राहों की ओर बढते हुए अब कदम डगमगाया नही करते,
अब ये सच जान गया है मन कि बीते हुए पल वापस आया नही करते।
यादें मगर साया बनकर साथ चलती हैं,
खुशियों को पाने की आस नही, बस मौत को गले लगाने की चाह है,
कुछ दुख भरे लम्हे गुजर गये हैं, कुछ वक़्त और बिताना है।
जीवन क्या है ये आज मैनें जाना है।