Friday, October 8, 2010

मुझे फिर से प्रशन दो,नये युग नये दौर के।


मुझे फिर से प्रशन दो,नये युग नये दौर के।
में उल्झी हुई ज़िन्दगी जीने की आदी हो गयी हूँ,
अब नही सुलझे हुए जीवन की मुझको कामना,
तो बदल दो फिर प्रशन मेरे उलझा के उनको गौर से,
मुझे फिर से प्रशन दो,नये युग नये दौर के।
मुझको नही भाता सुबह बेफिक्र होकर जागना,
उलझनो को छोडकर खुशयों के पीछे भागना।
मुझको उलझाए रखो चुनौतियों में चारों ओर से,
मुझे फिर से प्रशन दो,नये युग नये दौर के।
जब सुख की चाह थी,तब ना मुझे खुशियों मिलीं,
चुनौतियाँ इस् कदर बढीं,फिर वही मेरी आदत बनी।
अब ना मुझे देना सुकून,मर ना जाऊ उनके जोर से,
मुझे फिर से प्रशन दो,नये युग नये दौर के।
मेरी आय के श्रोत तुम फिर से बन्द कर दो,
मेरे शत्रुओं को फिर उन्माद से भर दो।
रातों की नींद उड जाए मेरी,लेनदारों के शोर से
मुझे फिर से प्रशन दो,नये युग नये दौर के।

No comments:

Post a Comment