Tuesday, March 12, 2013


 मेरे पास तेरी यादों  का जहां  था ..
टूटा था दिल आँखों में तूफ़ान था .
कुछ लम्हों का करीब से छू  गयी ..
जब तक दिल में तेरा अरमां  था .
तुझे पाने की दिल में इस कदर थी चाहत ..
कि  हर मुश्किल से लड़ना आसन था .
मेरी पलकों पे आकर ठहर गया ..
आँखों में जो सपनों  का कारवां था .
हम दोनों के बीच फासले थे इतने ..
कि  दूर जितना जमीं से आसमान था .
तब जो वक़्त था पास हमारे ..
क्या था पता कि  दो पल का मेहमान था ..


Thursday, October 21, 2010

मेरी गली

नफरत का जहां नाम नहीं,प्यार रहता जहॉ घर घर ।
उसी गली के मोड पर, आखरी है मेरा घर,
जिस गली के कोने से गुडिया के बाल वाला दिख जाए,
बस समझो भैया वहीँ से मेरी गली शुरु हो जाए,
बचपन से जवानी तक आवाज ना उसकी बदली,
बदल गयी सारी दुनिया पर गली ना मेरी बदली,
बच्चों का शोर कहीं, कहीं दुकानदारों की आवाज,
यहीं मनती होली, दीवाली यहीं सुनती मस्जिद की नवाज़,
मेरे घर की बालकनी से दिखता सारी गली का मन्जर,
बच्चे स्कूल जाते दिखते, बडे जाते दिखते दफ़्तर,
आजे, पीछे, ऊपर, नीचे हर दम होती भागम- दोड,
कभी चुप रहती, कभी शोर मचाती,
कई सालों से ऐसी ही है ये रोड,
ना आराम, ना थकान सँभालती सारा जहाँ,
हर पल यूँ देखती सबको जैसे ममता भरी माँ ,
सोचती हूँ  की हर गली ऐसी ही होती है,
फिर याद आया माँ तो एक ही होती है,
एक ही होती है।

Tuesday, October 12, 2010

तमन्ना


       
कभी चाँद सा रोशन होने की तमन्ना है,
तो कभी सितारों सा जगमगाने को जी चाहता है।
कभी बारिश की हर बूंद मोतियों सी लगती है,
तो कभी इनसे दूर जाने को जी चाहता है।
यूं तो मुक्म्मल है जिन्दगी हर खाब पुरा है,
तो कभी खाबों से परे नये खाब सजाने को जी चाहता है।
जिन्दगी तू इतनी करवटें ना लिया कर,,
कि तेरी हर करवत पे मौत को गले लगाने को जी चाहता है।
कभी सूखे पत्तों पर दिल रोता है बच्चों कि तरह,
तो कभी खिली हुई हर कली पर मुस्कराने को जी चाहता है।
कभी खुदा की दी हुई जिन्दगी पर गमगीन हो जाती हूँ ,
तो कभी उसकी जिन्दगी पर नाज करने को जी चाहता है।
कभी हर रिश्ते को पास देखना चाहता है ये दिल,
तो कभी हर रिश्ते को तोड जाने को जी चाहता है।
ये कैंसी उलझन है जिन्दगी?में खुद समझ नही पाती,
पर यूं ही तेरा हर लम्हा यादों में सजाने को जी चाहता है।

पत्थर


अब जो मिले राहो मे पत्थर कही।
तो पूछूँगी उससे क्यूँ तू रोता नही,
ना जाने कितनी चोट देती है दुनिया तुझे,
क्यूँ तुझे फिर भी हर चोट पे दर्द होता नही?
ना अश्क बहाता है तू ना खुशी में हंसता है,
क्यों तुझे कोई एहसास भिगोता नही?
हर कोई तुझमे अपना स्वार्थ ढूंढता है,
क्यूँ तेरा स्वाभिमान कभी खोता नही?
माना कि ये दुनिया बहुत बडी है,
पर अस्तित्व तेरा भी कोई छोटा नही,
ना तू शिकवा करता है, ना शिकायत,
क्या कोई गम तेरे दिल को छूता नही,
या तो तू आज तक कभी जागा ही नही,
या फिर खामोश दिल तेरा कभी सोया ही नही॥

निस्ठुर पुत्र


                              
आज मेरी रुह लज्जा से जर जर हुई ,
नीरव है वो बस अश्क है बहा रही।
घर से एक माँ आज है बेघर हुई,
अपने ही पुत्रों कि वो यातनाएँ झेल रही।
कल तक थी जो सागर वितत आज है पोखर हु,
मुकुलित जिस पुष्प को प्यार माँ ने था दिया,
आज खिलकर पुष्प ने उसको ही है छ्ला,
दावानल भी ना भस्म कर सके जिसको।
आज देह पुत्र की इस कदर पत्थर हुई,
थी जो कभी अमूल्य मुकुताफ़ल माँ उसके लिये,
आज वो घर की देवी, मरकत से है कंकर हुई,
इतना स्वार्थ, इतना उम्माद?किसको तू छ्ल रहा?
भोर जो सुन्दर है तेरी तभी तू ये भूल रहा,
हर सुबह की रैन है,आने मे उसे कब देर हुई?