Friday, October 8, 2010

अब ना रोको मशाल को,अब दिये बुझ जाने दो


अब ना रोको मशाल को,अब दिये बुझ जाने दो।
अब जो घर जलना ही है,तो अभियोग क्यूँ दियों को हो,
सहिष्णुता का बान्ध अब टूटने की कगार पर है,
सौ दियों की लौ का जिम्मा अब एक मशाल पर है,
अब नही यह रहने योग्य,हुंक्र्ति दिवारो से निकले यहॉ ।
अपनो के ही रक्त्त की प्यास,प्यासे रिश्तों को है जहॉ ,
ना जो अब ये आशियाना जलाया गया तो जान लो।
रक्त्त बहेगा फिर इस तरह, ना फिर रुकेगा ये मान लो,
बरछीयों से ना तलवार से, ना माँ काली के भाल से।
परलय से भी ना सुन्य होगा,पाप आज उस काल में है,
सौ दियो की लो का जिम्मा अब एक मशाल पर है।
एक मशाल जो क्रन्ति की सबके दिलों मे जल उठी है,
बस वही काल बन पाप का,महाप्रलय मे जुटी है॥

No comments:

Post a Comment